संक्षेप में
- गणगौर एक हिंदू त्योहार है जिसे की ख़ास तोर से भारत के राजस्थान में मनाया जाता है।
- इस त्योहार में देवी पार्वती जी की पूजा की जाती है, जो की वैवाहिक भक्ति और स्त्री शक्ति की प्रतीक है।
- विवाहित महिलाएं अपने पति की सलामती के लिए व्रत रखती हैं और अनुष्ठान करती हैं।
- वहीं अविवाहित महिलाएं उपयुक्त साथी पाने के लिए प्रार्थना करती हैं।
क्या आप जानते हैं गणगौर का त्योहार क्यों मनाया जाता है? शायद आप में कुछ लोग ऐसे हो जिन्हें की इस पवित्र पर्व के विषय में पता हो। मैं आपको बता देना चाहता हूँ की बाकी के भारतीय पर्वों की तरह गणगौर भी एक खूब पावन पर्व होता है। वैसे तो भारत को पर्वों का देश कहा जाता है क्योंकि भारत में अनेकों पर्व धूम धाम से मनाये जाते हैं।
खासकर हिन्दू धर्म में इतने पर्व है कि कोई अंदाज़ नहीं लगा सकता। क्योंकि कुछ पर्व क्षेत्रीय प्रकार के होते हैं जिन्हें सभी क्षेत्र में न मनाकर कुछ सीमित क्षेत्रों में मनाया जाता है। इसी तरह गणगौर एक हिन्दू पर्व है लेकिन इसे सभी हिन्दू नहीं मनाते है।
देखा जाये तो गणगौर है तो एक पर्व ही, वहीँ गणगौर से जुडी ऐसे बहुत से बातें हैं जिनके विषय में शायद आपको कुछ भी मालूम न हो। इसलिए मैंने सोचा की क्यूँ न आप लोगों ये बताया जाये की गणगौर क्यों मनाई जाती है? तो फिर चलिए शुरू करते हैं और गणगौर व्रत के विषय में और अधिक जानकारी प्राप्त करते हैं।
गणगौर क्या है – What is Gangaur in Hindi
गणगौर प्रेम एवं पारिवारिक सौहाद्र का एक पावन पर्व है, जिसे की हिन्दुवों द्वारा मनाया जाता है। गणगौर बना हुआ है दो शब्दों के मिलने से, गण और गौर। इसमें गण शब्द से आशय भगवान शंकर जी से है और गौर शब्द से आशय माँ पार्वती से है।
गणगौर राजस्थान का मुख्य पर्व है और वहां इसकी काफी मान्यता है। इसे राजस्थान में आस्था के साथ मनाया जाता है। इस दिन गणगौर की पूजा की जाती है, लड़कियां एवं महिलाएं शंकर जी एवं पार्वती जी की पूजा करती हैं। गणगौर पर्व से भगवान शंकर और माता पार्वती की कहानी जुड़ी हुई है इसीलिए इस पर्व की हिन्दू धर्म में काफी मान्यता है।
जैसे की मैंने पहले भी कहा है की, गणगौर एक हिन्दू धर्मावलंबियों का पर्व है जो भारत देश में मुख्यतः राजस्थान और मध्यप्रदेश के सीमावर्ती इलाकों में मनाया जाता है। मान्यता है गणगौर पर्व के पीछे हिन्दू धर्म के भगवान शंकर और मां पार्वती जी की कहानी जुड़ी हुई है। इसीलिये हिन्दू धर्म में गणगौर पर्व in Hindi की मान्यता कुछ अलग ही रूप से है।
त्योहार | गणगौर |
अन्य नाम | गणगौरी तीज |
अनुयायी | राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, और पश्चिम बंगाल के हिन्दू महिलाएं |
प्रकार | धार्मिक, सांस्कृतिक |
महत्व | विवाहित स्त्रियों के लिए पति की दीर्घायु और कुँवारी लड़कियों के लिए अच्छे वर की कामना |
उत्सव | 16 दिनों तक चलने वाले उत्सव, मेहंदी, गीत, और मूर्ति पूजा |
आवृत्ति | वार्षिक |
संबंधित | करवा चौथ, वरलक्ष्मी व्रतम |
तारीख | 11 अप्रैल, 2024 |
गणगौर पर्व कैसे मनाया जाता है?
गणगौर में गण शब्द से आशय भगवान शंकर जी से है और गौर शब्द से आशय माँ पार्वती से है। यह पर्व 16 दिनों तक लगातार मनाया जाता है। इस पर्व को महिलाएं सामूहिक रूप से 16 दिनों तक मनाती हैं। इस दिन भगवान शिव की और माता पार्वती की पूजा की जाती है।
इस पर्व में जहाँ कुंवारी लड़कियां इस दिन गणगौर की पूजा कर मनपसंद वर की कामना करती हैं, वहीँ शादीशुदा महिलाएं इस दिन गणगौर का व्रत रख अपने सुहाग की लंबी उम्र की कामना करती है।
इस दिन महिलाएं गणगौर मतलब शिव जी और मां पार्वती की पूजा करते समय दूब से दूध की छांट देते हुए गोर गोर गोमती गीत गाती हैं। नवविवाहित महिलाएं पहला गणगौर का पर्व अपने पीहर आकर मनाती है। गणगौर की पूजा में लोकगीत भी गाये जाते हैं जो इस पर्व की शान है।
गणगौर क्यों मनाया जाता है?
बहुतों के मन में ये सवाल जरुर आया होगा की आखिर में गणगौर क्यूँ मनाया जाता है? गणगौर पर्व के पीछे मान्यता है कि इस दिन कुंवारी लड़कियां गणगौर की पूजा करती हैं तो उन्हें मनपसंद वर की प्राप्ति होती है और शादीशुदा महिलाएं यदि गणगौर पूजा करती हैं और व्रत रखती है तो उन्हें पतिप्रेम मिलता है और पति की आयु लंबी होती है।
राजस्थान में ये पर्व 16 दिनों तक लगातार धूम धाम से मनाया जाता है। राजस्थानी में कहावत है ‘तीज तींवारा बावड़ी ले डूबी गणगौर‘ अर्थ है कि सावन की तीज से त्योहारों का आगमन शुरू हो जाता है और गणगौर के विसर्जन के साथ ही त्योहारों पर चार महीने का विराम आ जाता है।
गणगौर 2024 कब मनाया जाता है?
गणगौर पर्व 16 दिनों तक लगातार मनाया जाने वाला पर्व है। गणगौर पर्व होली के दूसरे दिन से ही शुरू हो जाता है और होली के बाद 16 दिन तक लगातार मनाया जाता है। गणगौर का पर्व हिंदी कैलेंडर के हिसाब से चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया को से मनाना शुरू किया जाता है। पुराणों के अनुसार गणगौर पर्व का प्रारंभ पौराणिक काल से हुआ था और तब से अर्थात कई वर्षों पूर्व से हर वर्ष मनाया जाने वाला पर्व है।
जो महिलाएं गणगौर की पूजा करती है वे महिलाएं अपने पूजे हुए गणगौर को चैत्र शुक्ल पक्ष की द्वितीया अर्थात होली के दिन किसी नदी या सरोवर जाकर पानी पिलाती है और चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया को अर्थात होली के दिन सायंकाल में गणगौर की मूर्ति का विसर्जन कर देती हैं।
गणगौर 2024 कब है – Gangaur Kab Hai
इस साल 2024 में गणगौर का त्यौहार 11 April 2024 को यानि शुक्रवार को मनाया जायेगा। गणगौर की तिथि की शुभ शुरुआत 11 April 2024 को शाम 6 : 20 बजे होगी। और तिथति की समाप्ति 11 April 2024 को शाम 5 ; 00 बजे होगी।
गणगौर पूजा समय
तृतीया तिथि शुरू : 18:20 – 23 मार्च 2024
तृतीया तिथि ख़त्म : 17:00 – 24 मार्च 2024
गणगौर की कहानी
माना जाता है कि प्राचीन से समय माता पार्वती ने भगवान शंकर जी को वर (पति) के रूप में पाने के लिए बहुत तपस्या और व्रत किया। फलस्वरूप माता पार्वती की इस तपस्या और व्रत से प्रसन्न होकर माता पार्वती के सामने प्रकट हो गए।
भगवान शिव जी ने माता पार्वती से वरदान मांगने का अनुरोध किया। वरदान में माता पार्वती जी ने भगवान शंकर जी को ही वर के रूप में पाने की अभिलाषा की। माता पार्वती की इच्छा पूरी हुई और मां पार्वती जी का विवाह भोलेनाथ के साथ सम्पन्न हुआ।
मान्यता है कि भगवान शंकर जी ने इस दिन माँ पार्वती जी को अखंड सौभाग्यवती होने का वरदान दिया था। मां पार्वती ने यही वरदान उन सभी महिलाओं को दिया जो इस दिन मां पार्वती और शंकर जी की पूजा साथ में विधि विधान से करें और व्रत रखें।
गणगौर व्रत कैसे रखा जाता है?
गणगौर त्यौहार में इसकी व्रत की अलग ही महत्व है.चैत्र शुक्ल पक्ष की एकादशी को व्रतधारी महिलाएं प्रातः स्नान कर गीले कपड़ों में ही घर के पवित्र स्थान में लकड़ी की बनी टोकरी में जवांरे बोती हैं और इन जवांरो को ही गौरी (मां पार्वती) और ईशर (भगवान शंकर) का रूप माना जाता है।
गणगौर का व्रत रखने वाली महिलाएं सिर्फ रात में एक समय का भोजन करती हैं। जवांरो का विसर्जन होने तक प्रतिदिन दोनों समय गणगौर की पूजा करने के बाद भोग लगाया जाता है।
गणगौर की स्थापना में सुहाग की वस्तुएं चढ़ाई जाती हैं एवं सुहाग की सामग्री का पूजन कर ये वस्तुएं गौरी जी को अर्पित की जाती हैं। इसके बाद गौरी जी को भोग लगाया जाता है फिर गौरी जी की कथा सुनी जाती है। कथा सुनने के बाद शादीशुदा महिलाएं चढ़ाए हुए सिंदूर से अपनी मांग भरती हैं।
गणगौर पूजा का महत्व
राजस्थान में गणगौर पूजा और व्रत का विवाहित महिलाओं के लिए विशेष महत्व माना गया है। मान्यता है कि गणगौर की पूजा और व्रत करने वाली महिलाओं को सदा सुहागन का वरदान हैं और कुवांरी लड़कियों को गणगौर पूजा करने से इक्छित वरप्राप्ति होती है।
इस पूजा में 16 अंक का भी विशेष महत्व माना गया है। सबसे पहली बाटो ये पर्व 16 दिनों तक लगातार मनाया जाता है। गणगौर की पूजा में गीत गाते हुए महिलाएं काजल, रोली और मेहंदी से 16-16 बिंदी लगाती हैं। गणगौर में चढ़ने वाले फल व सुहाग के सामान की संख्या भी 16-16 ही रहती हैं। महिलाएं भी इस दिन 16 श्रंगार में नजर आती है।
गणगौर पर्व में पूजा के समय लोकगीत भी गाये जाते हैं। गणगौर पर्व में गाये जाने वाले लोकगीतों को इस पर्व की जान कहते हैं। लोकगीतों के बगैर यह पर्व अधूरा है।
गणगौर का त्योहार केवल कुंवारी लड़कियां ही क्यूँ मनाती हैं?
गणगौर का त्योहार कुंवारी लड़कियां इसीलिए मनाती हैं ताकि उन्हें उनका मनचाहा वर प्राप्त हो सके।
गणगौर पूजा में किस देवी की पूजा की जाती है?
गणगौर पूजा में गौरी जी की पूजा की जाती है।
आज आपने क्या सीखा
मुझे उम्मीद है की आपको मेरी यह लेख गणगौर क्यों मनाया जाता है जरुर पसंद आई होगी। मेरी हमेशा से यही कोशिश रहती है की readers को गणगौर कैसे मनाते हैं के विषय में पूरी जानकारी प्रदान की जाये जिससे उन्हें किसी दुसरे sites या internet में उस article के सन्दर्भ में खोजने की जरुरत ही नहीं है।
इससे उनकी समय की बचत भी होगी और एक ही जगह में उन्हें सभी information भी मिल जायेंगे। यदि आपके मन में इस article को लेकर कोई भी doubts हैं या आप चाहते हैं की इसमें कुछ सुधार होनी चाहिए तब इसके लिए आप नीच comments लिख सकते हैं।
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