भारत सरकार ने Tesla की मना करने के बाद भी अपनी नई इलेक्ट्रिक व्हीकल पॉलिसी को आगे बढ़ाने का फैसला किया है। केंद्रीय भारी उद्योग मंत्री एचडी कुमारस्वामी ने सोमवार को स्पष्ट किया कि Tesla भारत में मैन्युफैक्चरिंग में रुचि नहीं दिखा रही है।
Economic Times की रिपोर्ट के अनुसार, सरकार जल्द ही इस EV इंसेंटिव प्रोग्राम के तहत आवेदन स्वीकार करना शुरू करेगी जो मार्च 2024 में घोषित किया गया था।
नई EV पॉलिसी की मुख्य बातें
यह पॉलिसी 35,000 डॉलर (लगभग 30 लाख रुपए) से अधिक कीमत वाली इलेक्ट्रिक कारों पर इंपोर्ट ड्यूटी को घटाकर 15% कर देती है। वर्तमान में यह 70-110% तक है। कंपनियों को 4,150 करोड़ रुपए (लगभग 500 मिलियन डॉलर) का निवेश करना होगा और तीन साल के अंदर भारत में लोकल प्लांट स्थापित करना होगा।
इस स्कीम के तहत कंपनियां सालाना 8,000 कारें तक कम ड्यूटी पर इंपोर्ट कर सकती हैं। अगर किसी साल पूरी क्वांटिटी का इस्तेमाल नहीं होता तो इसे अगले साल के लिए कैरी फॉरवर्ड किया जा सकता है।
Tesla की अनुपस्थिति और अन्य कंपनियों की रुचि
Tesla के CEO एलन मस्क लंबे समय से भारत के हाई इंपोर्ट टैरिफ की आलोचना करते रहे हैं। कंपनी सिर्फ डीलरशिप और शोरूम के जरिए इंपोर्टेड कारें बेचना चाहती है, लोकल मैन्युफैक्चरिंग में रुचि नहीं दिखा रही।
दूसरी तरफ, Mercedes-Benz, Volkswagen, Hyundai और Kia जैसी कंपनियों ने इस पॉलिसी में दिलचस्पी दिखाई है। VinFast Auto तो पहले से ही भारत में फैक्ट्री बना रही है।
चुनौतियां और भविष्य की संभावनाएं
Elara Securities के विश्लेषक Jay Kale का कहना है कि Tesla, BYD और VinFast के बिना यह पॉलिसी “नॉन-स्टार्टर” हो सकती है। BYD को चीनी कंपनी होने के कारण भारत में एंट्री नहीं मिलेगी क्योंकि सरकार चीनी निवेश को लेकर सतर्क है।
भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कार मार्केट है जहां EV की मांग लगातार बढ़ रही है। 2024 में कुल कार सेल्स में EV का हिस्सा सिर्फ 2.5% था, जिसे सरकार 2030 तक 30% तक पहुंचाना चाहती है। Tata Motors और Mahindra & Mahindra जैसी घरेलू कंपनियां इस पॉलिसी का विरोध कर रही हैं क्योंकि वे हाई टैरिफ की सुरक्षा में काम कर रही हैं।