CD का फ़ुल फ़ोरम होता है “Compact Disc”। ये CDs अक्सर दिखायी पड़ते हैं circular discs के आक़ार के, जिनकी अगर आक़ार की बात की जाए तब ये क़रीब 4.75 in (12 cm) के होते हैं diameter में।
इस CD standard को सबसे पहले प्रपोज़ किया गया था Sony and Philips के द्वारा वो भी सन 1980 में। वहीं इस तकनीक को सबसे पहली बार US मार्केट में सन 1983 में लाया गया था। CDs में ख्यमता होती है करिब 700 MB की data या 80 minutes की audio।
CD में डेटा को store किया जाता है छोटे notches में disc पर और इस डेटा को तेज़ी से read किया जाता है एक laser के द्वारा वो भी एक optical drive के द्वारा। यह drives translate करते हैं इन notches को (जो की पेश होते हैं 1’s और 0’s में) वो भी usable data में।
पहले ज़माने के CDs प्रायः रूप से audio CDs हुआ करते थे, उन्हें बाद में बदला गया audio tapes (जो की पहले ही records को बदल चुका था)। Audio CDs में यूज़र चाहे तो डिस्क के किसी भी हिस्से को jump कर सकता था। CDs को बार बार सुना जा सकता है वो भी बिना उसकी क्वालिटी को कम किए ही। वहीं लेकिन Audio tapes की क्वालिटी कम हो जाती है यदि उसे १० से १५ बार यदि निरंतर सुना जाए तब।
इसका मुख्य कारण यह है की laser जो की डेटा को read करता है वो CD के डिस्क पर ज़रा सा भी pressure नहीं देता है, वहीं लेकिन tape रिकॉर्डर में playheads बहुत ही ज़्यादा pressure प्रदान करती है magnetic strip पर tape के, जिससे उसकी क्वालिटी धीरे धीरे ख़राब हो जाती है।
सन 1985 में, CD-ROMs ने कम्प्यूटर मार्केट में अपना पैर रखा था। क्यूँकि वो ज़्यादा information स्टोर करने में सक्षम थे Floppy Disk की तुलना में (700 MB compared to 1.4 MB)। CDs जल्द ही बहुत ही common software format भी बन गया।
1988 में, CD-R (CD-Recordable) तकनीक पेश की गई थी, जिससे कंप्यूटर उपयोगकर्ता अपनी सीडी को जला सकते थे। हालांकि, 1990 के दशक के अंत तक यह तकनीक मुख्यधारा नहीं बन पाई। एक छोटी 3″ CD, जिसे “CD-3” कहा जाता है, भी उपलब्ध है और अधिकांश ट्रे-लोडिंग CD-ROM ड्राइव द्वारा पठनीय है।
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