महान कवि और लेखक रविंद्रनाथ टैगोर जी ने कई सारी ऐसी कहानियां लिखी है। जो ना सिर्फ बच्चों का मन बहलाती है बल्कि अच्छी सीख भी देती है। रविंद्र नाथ टैगोर जी द्वारा लिखे गए छोटी-छोटी कहानियों में से कुछ ज्ञानवर्धक अच्छी कहानियां हम यहां पेश करने वाले हैं। यह कहानियां उम्र के लोगों के लिए हैं। इन्हें खासकर बच्चों के लिए लिखा गया है।
यहाँ हमने बच्चों Hindi Short Stories की पूरी श्रुंखला तेयार किया है. दिए गए लिंक में जा कर आप उन्हें पढ़ सकते है और बच्चों को सुना सकते है।
Rabindranath Tagore Short Stories in Hindi
वैसे तो रविंद्रनाथ टैगोर जी ने कई प्रसिद्ध उपन्यास, कविता और बहुत कुछ लिखा है, लेकिन उनकी ऐसे बहुत ही छोटी छोटी कहानियाँ भी महजूद है जो की हमेशा से बच्चों को प्रेरित करती आयी है। ऐसे में हमने भी अपनी तरफ़ से एक कोशिश करी है आपको लोगों तक उन कहानियों को पहुँचाने के लिए। उम्मीद है कि हमारी ये कोशिश आपको ज़रूर पसंद आने वाली है।
तो बिना देरी किए चलिए सुनते हैं A Short Story by Rabindranath Tagore।
1. लालची कुत्ते की कहानी
जंगल में सभी जानवर एक साथ बड़ी खुशी से रहते थे। जंगल में एक कुत्ता भी रहता था। वह कुत्ता बहुत लालची था। उसे जितना भी खाने को मिले वह उसके लिए कम ही रहता था। वह हमेशा दूसरे जानवरों को बेवकूफ बना कर उनका खाना भी खा जाया करता था।
सभी जानवर उससे बहुत ही ज्यादा परेशान थे। एक तेज गर्मी के दिन में सभी जानवरों ने कुत्ते को मजा चखाने के लिए एक प्लान सोचा। सभी जानवरों ने एक मीटिंग बुलाई और उस मीटिंग में कुत्ते को भी बुलाया। सभी जानवर कह रहे थे कि तालाब के पास एक नया कुत्ता आया है और उसके पास बहुत सारा खाना है। जो भी उस कुत्ते को हराएगा। उसे सारा खाना मिल जाएगा।
जानवरों की इन बातों को सुनकर वह कुत्ता बहुत खुश हो गया क्योंकि उसे लगा कि उस कुत्ते को बेवकूफ बनाकर भगाना उसके दाएं हाथ का खेल है। वह कुत्ता तुरंत ही तालाब के पास जाने लगा जहां उसे रास्ते में एक हड्डी दिखाई दी। उसने उस हड्डी को उठा लिया और भागकर तालाब के पास गया।
जब उसने तालाब में झांक कर देखा तो उसमें उसे एक हड्डी लिया हुआ कुत्ता दिखाई दिया। वह कुत्ता तालाब वाले कुत्ते से वह हड्डी छीनना चाहता था। इसलिए वह बिना कुछ सोचे समझे उस कुत्ते को मारने के लिए तालाब में कूद पड़ा। तालाब में कूदते ही उसे एहसास हुआ कि वहां कोई कुत्ता नहीं बल्कि उसी का प्रतिबींब है। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। वह कुत्ता डूबने लगा था और फिर वह तालाब में डूब गया।
2. प्यासे कौवे की कहानी
एक चिलचिलाती गर्मी का दिन था। सभी लोग धूप और गर्मी से झुलस रहे थे। इस गर्मी के दिन में एक कौवा भी गर्मी से परेशान होकर यहां-वहां भटक रहा था। उसको बहुत तेज प्यास लगी थी। लेकिन कहीं भी पानी का कोई नामोनिशान दिखाई नहीं दे रहा था।
कभी वह कौवा कुए की तलाश में यहां वहां भटकता तो कभी मटके की तलाश करने लगता। लेकिन काफी तलाश करने के बाद भी उसे पानी नहीं मिला। इतनी देर पानी खोजने की वजह से वह पूरी तरह थक गया था और एक पेड़ पर जाकर बैठ गया।
कौवा बहुत ही ज्यादा थक गया था। जब वह मन उदास करके पेड़ पर बैठा था तो अचानक उसे घर के सामने एक घड़ा दिखाई दिया। वह कौवा फट से उड़कर उस गाड़ी के पास गया। उस घड़े में उसे थोड़ी सी पानी दिखाई दी लेकिन वह बहुत नीचे था।
उसकी चोच वहां तक नहीं पहुंच रही थी। तो उसने पानी को ऊपर लाने के लिए एक आईडिया सोचा। उसने एक एक करके घड़े में पत्थर डालना शुरू कर दिया। पत्थर डालने की वजह से घड़े का पानी ऊपर आ गया और फिर कौवे ने पानी पीकर अपनी प्यास बुझा ली।
3. मेहनती चींटी की कहानी
एक समय की बात है! एक छोटे से गांव में एक चींटी और एक टिड्डा रहता था। दोनों काफी अच्छे दोस्त थे और साथ में बहुत सारी मस्ती भी करते थे। लेकिन चींटी काफी मेहनती थी। वही टिड्डा थोड़ा आलसी था। उसे काम करना कुछ अच्छा नहीं लगता था। वह सारा दिन हंसते मुस्कुराते यहां वहां भटकते रहता था।
ऐसे ही देखते ही देखते गर्मियां आ गई। गर्मियों को देखकर चींटी और टिड्डा दोनों ही काफी खुश हो गए। चीटियों ने अपनी मस्ती और सभी चीजें छोड़कर खाना जुगाड़ करने में जुड़ गए। वही टिड्डा अब भी मस्ती ही करता था। और वह चीटियों को कहता कि तुम लोग इतनी मेहनत क्यों करते हो मेरी तरह मस्ती किया करो। देखो मैं कितना खुश हूं!
टिंडे की इन बातों को सुनकर चींटी कहते थे कि हम सर्दियों के लिए खाना जुगाड़ रहा है ताकि हमें सर्दियों में मेहनत ना करना पड़े। लेकिन टिड्डा चीटियों की बात पर हंसता और उनका मजाक उड़ाता था।
इसी तरह गर्मियां खत्म हो गई और सर्दी का दिन शुरू हो गया। सर्दियों आते ही चींटी अपनी बिल में अपने खाने मजे से खा रहे थे। वही टिड्डा बाहर ठंड में ठिठुर आ रहा था। टिड्डे की इस हालत को देखकर चीटियों को उस पर तरस आ गई और उन्होंने टिड्डे को अपने घर पर बुला लिया। इस तरह टिड्डे को भी अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने चीटियों से माफी मांगी।
4. मूर्ख बंदर की कहानी
कई साल पहले एक बहुत ही प्रसिद्ध व्यापारी रामपुर के छोटे से गांव में आया था। व्यापारी के पास एक छोटा सा और बहुत ही प्यारा सा बंदर था। व्यापारी इस बंदर को अपना दोस्त मानता था और हमेशा उसी के साथ रहता था। वैसे तो वह बंदर व्यापारी द्वारा कही गई हर बात को सुनता और समझता था।
लेकिन उसमें बुद्धि और सोचने की शक्ति एक बंदर जैसे ही थी। गर्मी के एक दोपहर में व्यापारी खाना खाकर आराम से सोया हुआ था। और उसका बंदर भी उसी के पास लेटा हुआ था। जब व्यापारी आपने नींद में खोया ही हुआ था तब अचानक एक मक्खी कहीं से उड़ती हुई आई और व्यापारी के नाक पर जाकर बैठ गई।
मक्खी की आवाज से व्यापारी का नींद खराब हो रहा था और वह नींद में ही मक्खी को भगाने की कोशिश कर रहा था। मक्खी की आवाज सुनकर बंदर भी उठ गया। और वह भी मक्खी को भगाने लगा।
लेकिन वह मक्खी बहुत जिद्दी थी। बार-बार व्यापारी के नाक में जाकर बैठ रही थी। बंदर बार-बार मक्खी को भगाने की कोशिश करता। मक्खी का भी हवा देकर उड़ाने की कोशिश करता तो कभी आवाज से।
लेकिन लाख कोशिश के बाद भी वह मक्खी को भगा नहीं पाया। जब मक्खी व्यापारी के नाक पर बैठा ही था तब बंदर ने गुस्से में है उससे एक हथौड़े से मरने का सोचा जिससे मक्खी एक बार में मर जाए। बंदर ने पास में रखे हथौड़े को उठाया और जोर से व्यापारी के नाक में मार दिया। इससे मक्खी तो नहीं मरी लेकिन व्यापारी का नाक तूट गया।
5. ना मिले तो अंगूर खट्टे हैं
एक जंगल था जहां पर बहुत सारे जानवर एक साथ रहा करते थे। उस जंगल में एक बहुत बड़ा और फलदार अंगूर का पेड़ था। उस पेड़ के अंगूर बहुत ही ज्यादा मीठे और रसीले होते थे। ऐसा लगता था जैसे वह अंगूर नहीं बल्कि अमृत है।
सभी जानवर उस अंगूर को खा कर बहुत खुश हो जाते थे। अंगूर के पेड़ की तारीफ सुनकर एक लोमड़ी भी अंगूर खाने के लिए उस पेड़ के पास गया। अंगूर खाने के लिए उसने बहुत कोशिश की वह बहुत उछला। लेकिन अंगूर का पेड़ काफी ऊंचाई पर था।
जिसकी वजह से वह लोमड़ी अंगूर तक पहुंच नहीं पाया और उसके हाथ एक भी अंगूर नहीं लगा। लाख कोशिश करने के बाद भी जब लोमड़ी को अंगूर नहीं मिला तो उसने कहना शुरू कर दिया कि मुझे तो यह अंगूर खाने ही नहीं है! यह तो खट्टे हैं।
6. Mashi की कहानी
‘माशी’ बंगाली में एक आम शब्द है जिसका इस्तेमाल चाची को संबोधित करने के लिए किया जाता है। हालांकि माशी केंद्रीय चरित्र है, यह कहानी वैवाहिक संबंधों और अकेलेपन को छूती है।
जोतिन की शादी मणि नाम की एक युवा लड़की से हुई है। मणि और जोतिन का वास्तव में पति और पत्नी के रूप में कभी अपना रास्ता नहीं था। मणि दिल से एक बच्चा है, जो अपने पति की गंभीर बीमारी से मुक्त है। वह केवल अपनी छोटी बहन के अन्नप्राशन समारोह में घर जाने के बारे में सोच सकती है।
माशी एक विधवा है जिसने कम उम्र में अपने पति को खो दिया। अपने अंदर की उस कड़वाहट के साथ, वह मणि की खुश रहने की इच्छा को नहीं समझ सकती। इस कहानी को माशी के नजरिए से समझा जाता है। जोतिन के प्रति उनका स्नेह पूरी तरह से चरम पर है।
जोतिन के दिल को शांत करने की कोशिश में, वह मणि के प्यार के बारे में बहुत कम झूठ कहती है। एक पत्नी के समर्पण और प्रेम को शॉल बुनने, खाना पकाने और सिसकने में रातों की नींद हराम करने के संदर्भ में मापा जाता है।
यह कहानी शादी के बोझ से दबी एक युवा लड़की मणि की दुखद स्थिति को दर्शाती है, जोतिन के प्यार को एक बड़ी माशी से मिलाने में उसकी असमर्थता। माशी ने एक महिला के जीवन की त्रासदियों का महिमामंडन करना सीख लिया है और वह केवल अपने प्यार को हर रूप में एक पुरुष को समर्पित करने के बारे में सोच सकती है।
रवीन्द्रनाथ ठाकुर का जन्म कब हुआ था?
रवीन्द्रनाथ ठाकुर का जन्म 7 मई 1861 को हुआ था। वो एक बहुत ही प्रसिद्ध बंगाली लेखक, संगीतकार, चित्रकार और विचारक थे।
रवीन्द्रनाथ ठाकुर को दूसरे किस नाम से जाना जाता है?
रवीन्द्रनाथ ठाकुर को “गुरुदेव दे” नाम के साथ भी जाना जाता है।
रवीन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा रचित कुछ प्रसिद्ध उपन्यास क्या हैं?
रवीन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा रचित कुछ प्रसिद्ध रचनायों में शामिल हैं, उपन्यास: गोरा, घरे बाइरे, चोखेर बाली, नष्टनीड़, योगायोग; कहानी संग्रह: गल्पगुच्छ; संस्मरण: जीवनस्मृति, छेलेबेला, रूस के पत्र;
रवीन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा रचित कुछ प्रसिद्ध कविता क्या हैं?
रवीन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा रचित कुछ प्रसिद्ध कविताओं में शामिल हैं, कविता : गीतांजलि, सोनार तरी, भानुसिंह ठाकुरेर पदावली, मानसी, गीतिमाल्य, वलाका; नाटक: रक्तकरवी, विसर्जन, डाकघर, राजा, वाल्मीकि प्रतिभा, अचलायतन, मुक्तधारा, शामिल हैं।
दुनिया के पहले ग़ैर-यूरोपीय कौन थे जिन्हें की नोबल पुरस्कार दिया गया था?
रवीन्द्रनाथ ठाकुर, वह पहले ग़ैर-यूरोपीय थे जिनको 1913 में साहित्य के लिए नोबल पुरस्कार दिया गया।
वो कौन से कवि थे जिनकी दो रचनाएँ दो देशों की राष्ट्रगान बनीं ?
रवीन्द्रनाथ ठाकुर, वे एकमात्र कवि हैं जिनकी दो रचनाएँ दो देशों का राष्ट्रगान बनीं – भारत का राष्ट्र-गान ‘जन गण मन‘ और बाँग्लादेश का राष्ट्रीय गान ‘आमार सोनार बाँग्ला‘ उनकी ही रचनाएँ हैं।
रवीन्द्रनाथ ठाकुर का मृत्यु कब हुआ था?
रवीन्द्रनाथ ठाकुर का मृत्यु 7 अगस्त 1941 को हुआ था।
आज आपने क्या सीखा
मुझे आशा है की मैंने आप लोगों को Short Stories of Rabindranath Tagore in Hindi के बारे में पूरी जानकारी दी और में आशा करता हूँ आप लोगों को रवीन्द्रनाथ टैगोर की कहानियाँ के बारे में समझ आ गया होगा।
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Brother, mein, odisha,cuttack ka hun.sayad meri hindi utni achhi nahin hai. Lekin mein odia mein achha likhta hun.chahta hun ki odia mein blogging karun. Lekin odia ko google ka support nahin hai. Mera lekh google search mein ayega ki nahin, doubt mein hun.ek odia bhai ke hisab se kya madad kar sakte ho.