भारतवर्ष में गुरु की प्रमुख भूमिका मानी गयी है। लेकिन क्या आप जानते हैं की गुरु पूर्णिमा क्यों मनाया जाता है? भले ही पूरी दुनिया में किसी व्यक्ति का व्यक्तित्व संवारने के लिए शिक्षा को प्राथमिकता दी गयी है लेकिन वहीं देखा जाए तो भारत में शिक्षा को तो महत्व दिया गया है उससे भी कहीं ज्यादा प्राथमिकता शिक्षक को दी गयी है।
कहावत है कि गुरु ही है जो अपने शिष्य को सद्मार्ग के दर्शन कराता है। गुरु पूर्णिमा का पर्व गुरु को साक्षी मानकर मनाया जाता है।
हालांकि भारतवर्ष में मनाए जाने वाले हर पर्व के पीछे कोई न कोई पौराणिक मान्यता रहती है इसी तरह इस पर्व को मनाने के पीछे भी एक मान्यता है जो कि महर्षि वेदव्यास से जुड़ी हुई है। भारत में प्राचीन काल से गुरु और शिष्य की बहुत सी कथाएं प्रचिलित हैं जो हमें एहसास कराती हैं कि भविष्य संवारने में गुरु का विशेष योगदान रहता है।
वहीं भारत में गुरु और शिष्य के बीच एक अलग ही रिश्ता माना जाता है, शिष्य अपने गुरुओं को पूज्यनीय देव का स्वरूप मानते हैं। इसलिए आज मैंने सोचा की क्यूँ न आप लोगों को भी गुरु पूर्णिमा के विषय में पूरी जानकारी प्रदान करूँ जिससे की आपको भी पता चले की गुरु पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है। तो फिर चलिए शुरू करते हैं।
गुरु पूर्णिमा का अर्थ – What is Guru Purnima in Hindi
गुरु पूर्णिमा मूलतः भारत देश में मनाया जाने वाला पर्व है। इस दिन शिष्य अपने गुरु के प्रति आदर, सम्मान और कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। भारत में गुरुओं को देवता तुल्य माना गया है। वैंसे इस त्यौहार को हर कोई नही मनाता लेकिन बहुत से लोग इस पर्व को मनाते हैं और बहुत से लोग गुरु पूर्णिमा को काफी भव्य उत्सव के रूप में मनाते हैं।
गुरु पूर्णिमा में आमतौर पर शिष्य अपने गुरुओं के लिए इस दिन कृतज्ञता व्यक्त करते हैं लेकिन बहुत से लोग साधु संत आदि इस दिन स्नान ध्यान कर पूजा पाठ, आरती आदि करते हैं।
गुरु पूर्णिमा मनाने के पीछे एक मान्यता भी है जो कि महर्षि वेदव्यास जी से जुड़ी हुई है। बहुत से लोग इस दिन महर्षि वेदव्यास के छायाचित्र की पूजा आदि करते हैं। मान्यता है कि गुरु पूर्णिमा के दिन अपने गुरुओं का आशीर्वाद लेने से जीवन सफल हो जाता है।
आधिकारिक नाम | गुरु पूर्णिमा (ग्रीष्मकाल के पूर्ण चाँद के दिन गुरु पूजा) |
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अनुयायी | जैन, हिन्दू भक्त & भारत के बौद्ध भिक्षु |
उद्देश्य | आध्यात्मिक गुरु के लिए कृतज्ञता व्यक्त करना |
उत्सव | गुरु पूजा और मंदिर में जाना |
अनुष्ठान | गुरु पूजा |
तिथि | आषाढ़ पूर्णिमा (शुक्ल पक्ष, पूर्ण चाँद का चमकिला चन्द्र पक्ष) (जून–जुलाई) |
आवृत्ति | वार्षिक |
गुरु पूर्णिमा वर्ष 2024 तिथि एवं शुभ मुहूर्त
गुरु पूर्णिमा का पर्व हर साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। इस दिन गुरु की पूजा-अर्चना की जाती है और उनका सम्मान किया जाता है।
वर्ष 2023 में, गुरु पूर्णिमा की तिथि 04 जुलाई होगी, जो कि सोमवार के दिन पड़ेगी।
गुरु पूर्णिमा का प्रारंभ 02 जुलाई, रात 08:21 से होगा, और समापन 03 जुलाई, शाम 05:08 पर होगा।
गुरु पूर्णिमा के शुभ मुहूर्त के लिए, 03 जुलाई को सुबह 05:28 से 07:12, और सुबह 08:55 से 10:40 के मध्य का समय सर्वोत्तम माना जाता है।
शीर्षक | वर्ष | तिथि | समय |
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गुरु पूर्णिमा | 2023 | सोमवार, 3 जुलाई | पूर्णिमा तिथि प्रारंभ – 2 जुलाई, 2023 – 08:21 PM पूर्णिमा तिथि समाप्ति – 3 जुलाई, 2023 – 05:08 PM |
गुरु पूर्णिमा कब मनाया जाता है?
गुरु पूर्णिमा का पर्व भारत देश में वर्ष में एक बार हर वर्ष मनाया जाता है। गुरु पूर्णिमा का पर्व महर्षि वेदव्यास जी को समर्पित है। गुरु पूर्णिमा का पर्व हिंदी कैलेंडर के आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाया जाता है।
माना जाता है कि इस दिन 3000 ई। वर्ष पूर्व महर्षि वेदव्यास जी का जन्म हुआ था। उनके सम्मान में ही हर वर्ष आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है।
गुरु पूर्णिमा 2023 में कब था और 2024 में कब है?
वर्ष 2022 में गुरु पूर्णिमा तारीख 13 जुलाई को था। गुरु पूर्णिमा का मुहूर्त वर्ष 2022 में तारीख 13 जुलाई को 11:33 बजे से प्रारंभ था और तारीख 5 जुलाई को 10:13 बजे समाप्त था।
वर्ष 2024 में गुरु पूर्णिमा 03 जुलाई को है। वर्ष 2024 में गुरु पूर्णिमा का मुहूर्त 03 जुलाई को 08:33 बजे से प्रारंभ है और 25 जुलाई को 10:13 बजे समाप्त है।
गुरु पूर्णिमा क्यों मनाते है?
भारत में गुरु को प्राचीनकाल से देवता तुल्य माना गया है। प्राचीनकाल में गुरु अपने शिष्यों को आश्रम में निःशुल्क शिक्षा देते थे, शिष्य अपने गुरुओं के लिए गुरु पूर्णिमा के दिन पूजा आयोजित करते थे। माना जाता है कि गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु का आशीर्वाद लेने से शिष्य को सद्मार्ग की प्राप्ति होती है।
मान्यता है कि इस दिन महर्षि वेदव्यास जी का जन्म हुआ था और गुरु पूर्णिमा का पर्व महर्षि वेदव्यास जी को समर्पित है। महर्षि वेदव्यास जी का जन्म आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन हुआ था और हर वर्ष इसी दिन गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है।
एक तरफ ये भी माना जाता है कि गुरु पूर्णिमा से 4 महीने तक का मौसम अध्ययन के लिए बहुत अनुकूल रहता है। क्योंकि इन चार महीनों में न अधिक सर्दी होती है ना अधिक गर्मी।
गुरु पूर्णिमा की कहानी
गुरु पूर्णिमा का पर्व महर्षि वेदव्यास जी को समर्पित है। वेद, उपनिषद और पुराणों का प्रणयन करने वाले महर्षि वेदव्यास जी को मनुष्य जाति का प्रथम गुरु माना गया है। माना जाता है आज से लगभग 3000 ई। वर्ष पूर्व महर्षि वेदव्यास जी का जन्म हुआ था।
महर्षि वेदव्यास जी का जन्म आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को हुआ था और हर वर्ष आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को ही गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। इसीलिए इस दिन बहुत से लोग महर्षि वेदव्यास जी के छायाचित्र की पूजा करते हैं।
माना जाता है कि इसी दिन महर्षि वेदव्यास जी ने अपने शिष्यों एवं मुनियों को सर्वप्रथम भागवत गीता का ज्ञान दिया था। गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। शास्त्रों के अनुसार महर्षि वेदव्यास जी को तीनों कालों का ज्ञाता माना जाता है। हिन्दू धर्म के चारों वेदों का विभाग किया। महर्षि वेदव्यास जी ने ही श्रीमद भागवत की रचना की और अठारह पुराणों की रचना की।
गुरु पूर्णिमा का महत्व
गुरु का महत्व भारतवर्ष की संस्कृति में प्राचीनकाल से ही रहा है। गुरु एवं शिष्य की बहुत सी कथाएं भी प्रचिलित हैं। भारत में गुरु एवं शिष्य के बीच का एक अनोखा रिश्ता माना गया है। गुरु के प्रति आदर, सम्मान व कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए ही गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है।
गुरु को भारतवर्ष में शुरू से ही देवता तुल्य माना गया है और ब्रम्हा, विष्णु एवं महेश के रूप में पूजा गया है। गुरुपूर्णिमा का पर्व अंधविश्वास से नही बल्कि श्रद्धाभाव से मनाना चाहिए।
शास्त्रों में कहा गया है कि गुरु अपने शिष्य के जीवन को अंधकार से हटाकर प्रकाश की ओर ले जाता है। गुरु पूर्णिमा वर्ष भर में पड़ने वाली सभी पूर्णिमा से खास मानी जाती है। कहा जाता है कि गुरु पूर्णिमा का पुण्य अर्जित करने से वर्ष में पड़ने वाली सभी पूर्णिमाओं का पुण्य मिल जाता है।
गुरु पूर्णिमा का पर्व कैंसे मनाया जाता है?
प्राचीनकाल में गुरु अपने आश्रमों में शिष्यों को मुफ्त शिक्षा देते थे और सभी शिष्य मिलकर अपने गुरु के लिए पूजन आयोजित करते थे। गुरु पूर्णिमा का पर्व अलग अलग तरीके से मनाते हैं। आमतौर पर लोग इस दिन अपने गुरु का पूजन कर उन्हें उपहार देकर चरणस्पर्श करते हैं और गुरु का आशीर्वाद ग्रहण करते हैं। बहुत से लोग जिनके गुरु दिवंगत हो गए हैं वे अपने गुरु की चरण पादुकाओं की पूजा करते हैं।
कुछ लोग गुरु पूर्णिमा का पर्व मुहूर्त में मनाते है। सुबह जल्दी उठकर दैनिक क्रिया से निवृत्त होकर स्नान करते हैं। स्नान करने के बाद भगवान विष्णु, शंकर एवं बृहस्पति की पूजा करने के बाद व्यास जी की पूजा करते हैं।
इस दिन सफेद या पीला वस्त्र धारण कर अपने गुरु का चित्र उत्तर दिशा में रखा जाता है। गुरु के चित्र को फूलों की माला पहनाकर, भोग लगाकर आरती एवं पूजन किया जाता है इसके बाद चरणस्पर्श कर गुरु का आशीर्वाद ग्रहण किया जाता है।
गुरु पूजन में किसकी पूजा होती है?
गुरु पूजन में महर्षि वेदव्यास जी की पूजा होती है। मान्यता है कि आषाढ़ पूर्णिमा तिथि को ही वेदों के रचयिचा महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था। महर्षि वेदव्यास के जन्म पर सदियों से गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु पूजन की परंपरा चली आ रही है।
गुरु पूर्णिमा को दूसरे किस नाम से जाना जाता है?
गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जानते हैं।
प्रथम गुरु कौन है?
माता को ही प्रथम गुरु माना जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि जितना माता अपनी संतान को प्रेम करती है और उसकी हितैषी होती है, उतना अन्य कोई नहीं होता है। संतानों को भी माता से सर्वाधिक शिक्षा मिलती है। इस कारण माता प्रथम गुरु है। किसी ने बड़ा ही सुन्दर लिखा है कि अपने बच्चे के लिए मां शास्त्र का काम करती है और पिता शस्त्र का।
महर्षि वेदव्यास को समस्त मानव जाति का गुरु माना जाता है।
आज आपने क्या सीखा?
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