विश्वकर्मा पूजा क्यों मनाया जाता है 17 सितंबर को?

क्या आप जानना चाहते है के, विश्वकर्मा पूजा क्यों मानते है? विश्वकर्मा पूजा का इतिहास क्या है? Vishwakarma Puja जिसे की विश्वकर्मा जयंती भी कहा जाता है, इसे प्रतिवर्ष 17 सितंबर को पूरे धूम धाम से मनाया जाता है। इस पूजा को हिंदू समुदाय द्वारा एक प्रमुख त्योहार के रूप में मनाया जाता है। अगर आप नहीं जानते तो आपको बता दूँ की भद्रा के अंतिम दिन, जिसे कन्या संक्रांति या भद्रा संक्रांति के नाम से जाना जाता है, इसी दिन यह उत्सव मनाया जाता है।

आपको बता दूँ की श्रमिक अपने खेतों और कारखानों में अपनी दक्षता और उत्पादकता बढ़ाने के लिए भगवान विश्वकर्मा की पूजा करते हैं। तो आज के इस आर्टिकल में चलिए हम आपको बताते हैं कि विश्वकर्मा पूजा या विश्वकर्मा जयंती क्यों मनाया जाता है। उससे पहले गणेश चतुर्थी क्यों मनाया जाता है जरुर पढ़ें।

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भगवान विश्वकर्मा कौन है?

भगवान विश्वकर्मा जी देवताओं के शिल्पकार हैं। इसलिए इन्हें शिल्प के देवता के नाम से भी जाना जाता है। वहीं आपकी जानकारी के लिए बता दूँ की इनके पिता का नाम वास्तु था, जो धर्म की सातवीं संतान थे, और धर्म ब्रम्हा जी के पुत्र भी थे।

vishwakarma puja kyu manaya jata hai

हिन्दू धर्म में विश्वकर्मा को निर्माण एवं सृजन का देवता माना जाता है। पौराणिक काल में विशाल महलों, हथियारों और भवनों का निर्माण भगवान विश्वकर्मा जी ही करते थे।

इस वजह से आज के समय में हम विश्वकर्मा पूजा के दिन लोहे के सामानों जैसे औजारों, मशीनों और दुकानों की पूजा होती है और इस दिन अधिकतर दफ्तर बंद ही रहते हैं।

विश्वकर्मा जयंती क्या है?

विश्वकर्मा जयंती एक हिंदू त्यौहार है, जिसमें भगवान विश्वकर्मा की पूजा की जाती है। मान्यताओं के अनुसार, विश्‍वकर्मा पूजा के दिन विशेष तौर पर औजारों, निर्माण कार्य से जुड़ी मशीनों, दुकानों, कारखानों आदि की पूजा की जाती है। माना जाता है कि विश्वकर्मा की पूजा से जीवन में कभी भी सुख समृद्धि की कमी नहीं रहती।

नामविश्वकर्मा जयंती
अन्य नामविश्वकर्मा पूजा
आरम्भ17 सितंबर
समाप्त18 सितंबर
तिथिकन्या संक्रांति; हिंदू कैलेंडर के भाद्र माह का अंतिम दिन
उद्देश्यधार्मिक निष्ठा, उत्सव, मनोरंजन
पालनभगवान विश्वकर्मा का जन्म
अनुयायीहिन्दू, भारतीय
आवृत्तिसालाना
2023 तारीख17 सितंबर (रविवार)

2024 में विश्वकर्मा पूजा कब है?

2024 में विश्वकर्मा पूजा 17 September रविवार को है।

विश्वकर्मा पूजा क्यों मनाया जाता है?

आपके मन में यह खयाल जरुर आता होता के विश्वकर्मा पूजा 17 सितंबर क्यों मनाया जाता है? भगवान विश्वकर्मा को देवताओं का वास्तुकार कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार, भगवान विश्वकर्मा का जन्‍म भादो माह में हुआ था। हर साल 17 सितंबर को उनके जन्‍मदिवस को विश्‍वकर्मा विश्वकर्मा जयंती के रूप में मनाया जाता है।

भगवान विश्व कर्म को दुनिया के पहले इंजीनियर के रूप में भी जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि उन्होंने देवताओं के लिए भवनों के साथ-साथ देवताओं के हथियार भी बनाए थे। हिंदू धर्म में यह माना जाता है कि भगवान विश्वकर्मा सभी प्रकार के औजारों और लोहे की वस्तुओं को प्रभावित करते हैं इसलिए लोग इस दिन अपनी मशीनरी की पूजा करते हैं।

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विश्वकर्मा पूजा कैसे की जाती है?

भगवान विश्वकर्मा की पूजा के दिन फैक्ट्रियों और ऑफिसों में लगी हुई मशीनों की पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है की अगर भगवान विश्वकर्मा जी प्रसन्न हुए तब, व्यक्ति का व्यापार और ज्यादा तरक्की करता है। यदि हम पूजा विधि के बारे में जानें तब, ऐसा करने के लिए आप सबसे पहले अक्षत अर्थात चावल, फूल, मिठाई, फल रोली, सुपारी, धूप, दीप, रक्षा सूत्र, मेज, दही और भगवान विश्वकर्मा की तस्वीर इत्यादि की व्यवस्था कर लें।

सारी सामग्री का प्रबंध करने के बाद अष्टदल की बनी रंगोली पर सतनजा बनाएं। उसके बाद पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ विश्वकर्मा जी की मूर्ति की पूजा करें और उनके ऊपर फूल अर्पण करें, साथ ही कहे की –

हे विश्वकर्मा जी आइए, मेरी पूजा स्वीकार कीजिए।

त्यौहार मुख्य रूप से कारखानों और औद्योगिक क्षेत्रों में, अक्सर दुकान के फर्श पर मनाया जाता है। श्रद्धा के प्रतीक के रूप में पूजा के दिन को न केवल इंजीनियरिंग और स्थापत्य समुदाय द्वारा बल्कि कारीगरों, शिल्पकारों, यांत्रिकी, लोहारों, वेल्डर, औद्योगिक श्रमिकों, कारखाने के श्रमिकों और अन्य लोगों द्वारा चिह्नित किया जाता है।

वे बेहतर भविष्य, सुरक्षित कामकाजी परिस्थितियों और सबसे बढ़कर अपने-अपने क्षेत्रों में सफलता के लिए प्रार्थना करते हैं। कार्यकर्ता विभिन्न मशीनों के सुचारू संचालन के लिए भी प्रार्थना करते हैं।

यदि आप भी अपने कारोबार को आगे बढ़ाना चाहते हैं और अपने घर में सुख समृद्धि लाना चाहते हैं। तो आप भी विश्वकर्मा जी का त्यौहार जरूर बनाए। 

विश्वकर्मा पूजा की विधि

हमें यह तो मालूम है कि विश्वकर्मा पूजा किस तिथि को मनाया जाएगा। परंतु बहुत लोगों को विश्वकर्मा पूजा के शुभ मुहूर्त की जानकारी नहीं होती है। ऐसे में ये बात तो सभी को मालूम ही होता है की पूजा का फल तभी मिलता है, जब उसे सही मुहूर्त में किया जाए।

इसीलिए लोग सभी पूजा को उसके उचित में ही करते हैं। उसी तरह विश्वकर्मा पूजा कन्या संक्रांति महा पुण्य काल मैं मनाया जाता जिसकी शुरुआत 07:36 AM से 09:38 PM तक रहेगी। अगर इन शुभ मुहूर्त के बीच पूजन किया जाए तो पूजन का संपूर्ण फल मिलता है।

विश्वकर्मा का जन्म कैसे हुआ?

ब्रह्मा जी के पुत्र का नाम वास्तुदेव था। वास्तुदेव, धर्म की वस्तु नामक स्त्री से जन्मे सातवें पुत्र थे। इनका पत्नी का नाम अंगिरसी था। इन्हीं से वास्तुदेव का पुत्र हुआ जिनका नाम ऋषि विश्वकर्मा था। मान्यता है कि अपने पिता वास्तुदेव की तरह ही ऋषि विश्वकर्मा भी वास्तुकला के आचार्य बनें। भगवान विश्वकर्मा अपने पिता की तरह ही वास्तुकला के महान विद्वान बने।

विश्वकर्मा जी की पत्नी का नाम क्या है?

कथा मिलती है कि भगवान विश्‍वकर्मा की पत्‍नी आकृति हैं। इनके अलावा उनकी अन्‍य 3 पत्नियां थीं रति, प्राप्ति और नंदी। विश्‍वकर्मा के मनु चाक्षुष, शम, काम, हर्ष, विश्‍वरूप और वृत्रासुर नाम के 6 पुत्र हुए। इनके अलावा बहिर्श्‍मती और संज्ञा नाम की 2 पुत्रियां हुईं। कहा जाता है कि संज्ञा का विवाह सूर्यदेव से हुआ था। इसलिए भगवान सूर्य विश्‍वकर्मा के दामाद हैं।

विश्वकर्मा जी की पुत्री का नाम क्या है?

विश्वकर्मा जी की पुत्रियों के नाम रिद्दी और सिद्धि था, जिनका विवाह भगवान शिव के अनुज पुत्र भगवान गणेश जी के साथ हुआ था,जिनसे भगवान गणेश जी को दो पुत्रों की प्राप्ति हुई, जिनका नाम शुभ और लाभ है।

विश्वकर्मा के कितने पुत्र थे?

वायु पुराण के अनुशार विश्वकर्मा के पांच पुत्र थे। उनके नाम है – मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी और देवज्ञ।

मनुमयत्वष्टाशिल्पी देवज्ञ

विश्वकर्मा के प्रमुख निर्माण

भगवान विश्‍वकर्मा ने हर युग में देवी-देवताओं के लिए अलग-अलग वस्‍तुओं का निर्माण किया। इसमें सोने की लंका, हस्तिनापुर, स्‍वर्गलोक, पाताल लोक, पांडवों की इंद्रप्रस्‍थ नगरी, श्रीकृष्‍ण की द्वारिका, वृंदावन, सुदामापुरी, गरुड़ का भवन, कुबेरपुरी और यमपुरी का निर्माण किया।

लंकाहस्तिनापुरस्‍वर्गलोक
पाताल लोकपांडवों की इंद्रप्रस्‍थ नगरीश्रीकृष्‍ण की द्वारिका
वृंदावनसुदामापुरीगरुड़ का भवन
कुबेरपुरीयमपुरी

विश्वकर्मा के पाँच स्वरूपों और अवतारों का वर्णन

हिन्दू धर्मशास्त्रों और ग्रथों में विश्वकर्मा के पाँच स्वरूपों और अवतारों का वर्णन मिलता है-

  • विराट विश्वकर्मा – सृष्टि के रचयिता
  • धर्मवंशी विश्वकर्मा – महान् शिल्प विज्ञान विधाता और प्रभात पुत्र
  • अंगिरावंशी विश्वकर्मा – आदि विज्ञान विधाता वसु पुत्र
  • सुधन्वा विश्वकर्म – महान् शिल्पाचार्य विज्ञान जन्मदाता अथवी ऋषि के पौत्र
  • भृंगुवंशी विश्वकर्मा – उत्कृष्ट शिल्प विज्ञानाचार्य (शुक्राचार्य के पौत्र)

भगवान विश्वकर्मा जी के द्वारा निर्मित वस्तुएँ?

कहा जाता है कि भगवान विश्वकर्मा ने ही विष्णु जी का सुदर्शन चक्र, शिव जी का त्रिशूल, भगवान कृष्ण की द्वारिका नगरी, पांडवों की इंद्रप्रस्थ नगरी, पुष्पक विमान, इंद्र का व्रज, सोने की लंका बनाई थी। लंका में सोने के महतल का निर्माण शिव जी के लिए भी इन्होंने ही किया था।

भगवान विश्वकर्मा का जन्म कब हुआ था?

भगवान विश्वकर्मा का जन्म अश्विन कृष्णपक्ष की प्रतिपदा में हुआ था।

विश्वकर्मा किसके पुत्र थे?

भगवान विश्वकर्मा जी के पिता का नाम वास्तुदेव, और मां ना नाम अंगिरसी था।

विश्वकर्मा किस भगवान के अवतार हैं?

पुराणों के अनुसार विश्वकर्मा जी को शिव का अवतार माना जाता है।

क्या विश्वकर्मा ब्राह्मण है?

ब्रह्मांड पुराण, स्कंद पुराण, विश्वकर्मा पुराण के मुताबिक विश्वकर्मा जन्मों ब्राह्मण:; मतलब ये जन्म से ही ब्राह्मण है।

आज आपने क्या सीखा?

मुझे उम्मीद है की आपको मेरी यह लेख विश्वकर्मा पूजा क्यों मनाया जाता है जरुर पसंद आई होगी। मेरी हमेशा से यही कोशिश रहती है की readers को विश्वकर्मा पूजा कैसे मनाई जाती है के विषय में पूरी जानकारी प्रदान की जाये जिससे उन्हें किसी दुसरे sites या internet में उस article के सन्दर्भ में खोजने की जरुरत ही नहीं है।

इससे उनकी समय की बचत भी होगी और एक ही जगह में उन्हें सभी information भी मिल जायेंगे। यदि आपके मन में इस article को लेकर कोई भी doubts हैं या आप चाहते हैं की इसमें कुछ सुधार होनी चाहिए तब इसके लिए आप नीच comments लिख सकते हैं।

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Sumit Singh

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