शायद आपने भी Networking में Bridge के विषय में जरुर सुना होगा. बहुतों को इसके विषय में जानकारी भी होगी लेकिन यदि नहीं है तब आज हम इसी के विषय में जानने वाले हैं, की आखिर ये Bridge क्या है?
जब किसी road के निर्माण करने के दौरान एक नदी से उसे पार कराना होता है, तब ऐसे जगहों में engineers bridges का निर्माण करते हैं. ऐसे bridge का निर्माण दो स्थल भागों को जोड़ने के लिए होता है. चूँकि कोई car या bus पानी में तैर कर पार नहीं हो सकती है इसलिए उन्हें एक bridge की आवश्यकता होती है एक जगह से दुसरे जगह को जाने के लिए।
वहीँ अगर हम computer networking की बात करें तब, एक bridge भी वही समान कार्य करती है. ये दो या उससे ज्यादा local area networks (LANs) को एक साथ जोड़ने में काम आता है. इसमें cars, या फिर data (network की बात करें तब), ये bridge का इस्तमाल करती हैं network के अलग अलग हिस्सों को जाने के लिए।
ये device भी router के जैसे ही होते हैं, लेकिन ये उन data को analyze नहीं करते हैं जिन्हें की ये आगे forward करते हैं. इसी कारण के लिए bridges बहुत ही fast होते हैं data trasferring के मामले में, लेकिन वो router के जैसे इतने ज्यादा versatile नहीं होते हैं।
उदाहरण के लिए, एक bridge को एक firewall के तरह इस्तमाल नहीं किया जा सकता है जैसे की ज्यादा routers को किया जाता है. एक bridge data transfer कर सकता है अलग अलग protocols (जैसे की एक Token Ring और Ethernet network) के बीच और ये operate होता है OSI model के “data link layer” में या level 2 में।
इसलिए आज मैंने सोचा की क्यूँ न आप लोगों को Bridge क्या होता है और ये काम कैसे करता है के विषय में पूरी जानकारी दे दिया जाये जिससे आपको networking subject की एक बहुत ही ख़ास device के विषय में जानने को मिले. तो फिर बिना देरी किये चलिए शुरू करते हैं।
नेटवर्क ब्रिज क्या है (What is Bridge in Hindi)
ये Bridge एक ऐसा repeater होता है, जिसमें की एक ऐसी functionality होती है जिससे की वो content की filtering करता है, इसके लिए वो read करता है MAC addresses दोनों source और destination की।
इनका इस्तमाल दो LANs को interconnect करने के लिए होता है जो की वही समान protocol में कार्य कर रहे होते हैं. इसमें एक single input और एक single output port होती है, जो की इसे एक 2 port device बनाती है. ये device OSI Model के data link layer में operate करती है।
ये Bridge बहुत ही ज्यादा helpful होते हैं traffic के data load को filter करने के लिए, जिसके लिए वो उन्हें segments या packets में divide करते हैं. इनका इस्तमाल LAN या दुसरे network के traffic load को कम करने के लिए किया जाता है।
ये Bridges असल में passive devices होते हैं, क्यूंकि इनमें कोई interaction नहीं होती है bridged और paths of bridging के बीच।
Network Bridges कैसे काम करता है?
चलिए अब जानते हैं की ये network bridges कैसे काम करते हैं. Bridge devices inspect करती है incoming network traffic को और ये निर्धारित करती है की वो packets को आगे forward करें या उन्हें discard करें, ये निर्भर करता है उनकी destination के ऊपर।
उदाहरण के लिए एक Ethernet bridge, पहले inspect करती है प्रत्येक incoming Ethernet frame को जिसमें source और destination MAC addresses भी शामिल हैं — कभी कभी frame size — जब वो process कर रहा होता है individual forwarding decisions को।
ये network bridge कार्य करता है layer 2 में, जो की data link layer होता है OSI model की. ये connect करता है multiple network segments को इस layer में. Bridge केवल traffic को broadcast नहीं करता है एक network segment से दुसरे तक, बल्कि ये traffic को साथ में manage भी करता है।
Bridges इस्तमाल करते हैं bridge table के frames को send करने के लिए across network segments में. ये bridge table initially empty होता है. ये filled होता है bridge के द्वारा, जैसे जैसे ये frames receive करने लगता है nodes(computers) से जो की attached होता है network segments से. Bridge table को forwarding database भी कहा जाता है।
अगर address entry नहीं मिले उस table में, उस received frame के लिए, तब frame को broadcast किया जाता है bridge के सभी ports को; फिर destination network node respond करता है और फिर route create होता है।
Generally बात करें तब अगर bridge receive करता है frame, network के node से, तब वो table को check करता है और खुद ही destination MAC address को ढूंड लेता है. वहीँ इसी MAC address के आधार पर bridge ये निर्धारित करता है की उसे frame को filter, flood या copy करना होगा corresponding network segment में।
चलिए पूरी process को ठीक तरीके से समझते हैं
1. अगर destination node, network segment के समान side पर स्तिथ होता है जहाँ से frame आता है, तब bridge उस frame को block करता है दुसरे network segments में जाने से. इसे ही filtering कहा जाता है।
2. अगर destination node दुसरे network segment में स्तिथ होता है, तब bridge forward करता है received frame को उसके appropriate network segment में।
3. वहीँ अगर destination address ही unknown हो received frame का, तब bridge उसे forward करती है सभी network segments कोm केवल source address को छोड़कर. इस process को flooding कहा जाता है।
ब्रिज के प्रकार (Types of Bridge in Hindi)
अगर आप ब्रिज के प्रकार के बारे में बात करें तोह आप इसे 4 हिस्सों में बाँट सकते है. तो चलिए अब जानते हैं Bridges के प्रकारों के बारे में
Transparent Bridges
ये वो bridge होते हैं जिसमें stations पूरी तरह से unaware होते हैं bridge के existence को लेकर, जिसका मतलब है की क्या एक bridge को network में add किया गया है या delete किया गया है, ऐसे में इन stations की reconfiguration करना बिलकुल ही unnecessary होता है।
ये bridges मुख्य रूप से दो ही processes का इस्तमाल करते हैं i.e. bridge forwarding और bridge learning।
जब bridging की process होती है, तब ये एक bridging table अपने साथ ही बना देती है जहाँ ये store करती है MAC addresses बहुत से अलग अलग terminals की. इससे अगली बार ये table bridges की मदद करती है data packet को send करने के लिए पुरे exact location पर।
लेकिन जब एक specific address उस bridging table के contents को meet नहीं करती है, तब data packet को आगे forward किया जाता है प्रत्येक terminal को जो की LAN terminal से attach होते हैं, केवल एक ही computer को छोड़कर जहाँ से उसे भेजा गया होता है. इस प्रकार की bridging को transparent bridging कहा जाता है ।
Source Routing Bridges
इस प्रकार के bridges में, routing operation को perform किया जाता है source station के द्वारा और इसमें frame ही निर्धारित करती है की उन्हें किस route को follow करना है।
इसमें host चाहे तो frame discover कर सकता है, इसके लिए बस एक special frame send करना होता है, जिसे की discovery frame कहा जाता है. जो की पुरे network में spread हो जाती है सभी possible paths में, जो destination से linked हों।
जब source computer present करता है pathway information packet के बीच, तब इस प्रकार के bridging को source route bridging कहा जाता है. इस bridges को ज्यादातर Token Ring networks में इस्तमाल किया जाता है।
Transparent Learning Bridge
ये transparent bridge user की location को खोजती है source और destination address के माध्यम से. जब frame को receive किया जाता है bridge में तब ये check करती है इनकी source address और destination address को।
इसमें destination address को store किया जाता है अगर उसे routing table में नहीं पाया जाये तब. फिर frame को भेजा जाता है सभी LAN को जिसमें केवल वही LAN को exclude किया जाता है जहाँ से की वो frame आता है।
साथ ही routing table में भी source address को store किया जाता है. अगर दूसरा frame पहुँचता है जहाँ की previous source address अब इसकी destination address होती है तब इसे forward किया जाता है उस port को।
Transparent Bridges की physical topology network में loops को allow नहीं करती है. यही वो restriction होता है जो की transparent learning bridge के ऊपर होता है।
Bridge की पूरी operation को bridge processor के द्वारा ही operate किया जाता है जो की responsible होता है traffic को route करने के लिए across इसकी ports. इसमें processor decide करती है associated MAC addresses की destination ports को और इसके लिए वो access करती हैं एक routing database की।
जब एक frame आती है, तब processor check करता है output port को database में जिसमें की frame को relay किया जाने वाला होता है. अगर destination address मेह्जुद नहीं होता है database में तब processor उस frame को broadcast कर देता है सभी ports को, केवल एक ही port को छोड़कर जहाँ से की वो frame आता है।
ये bridge processor भी store करता है source address को frame में क्यूंकि ये source address किसी दुसरे incoming frame का destination address बन सकता है. ये learning bridge totally based होता है trust के ऊपर।
Transparent Spanning Tree Bridge
आखिरी प्रकार का bridge होता है transparent spanning bridge. ये bridges इस्तमाल करते हैं एक subnet को पुरे topology की जिससे की ये create कर सकें एक loop free operation।
इसमें received frame नीचे बताई गयी तरीके से ही check की जाती हैं. Arrived frame की destination address को check किया जाता है routing table की मदद से जो की database में स्तिथ होता है. इसमें ज्यादा information की जरुरत होती है इसलिए bridge port को भी store किया जाता है database में।
इस information को कहा जाता है port state information और ये मदद करता है इस बात को निर्धारित करने के लिए की, एक port को इस्तमाल किया जा सकता है या नहीं destination address के लिए।
इसमें port या तो एक block state में होता है spanning tree operations को पूर्ण करने के लिए या एक forwarding state में. वहीँ अगर port forwarding state में स्तिथ होता है तब frame को route किया जाता है port के across।
Port के अलग अलग status होते हैं जैसे की; ये “disabled” state में हो सकते हैं maintenance जैसे कारणों के लिए या ये unavailable भी हो सकते हैं temporarily, अगर databases को बदला जा रहा हो bridge में क्यूंकि हो सकता है की routed network को बदला गया हो जिसकारण ऐसा हो रहा हो।
Network bridges के Advantages क्या है?
वैसे तो इन bridges के बहुत सारे advantages हैं, चलिए उन्ही के विषय में जानते हैं
1. Bridges के बहुत ही simple configuration modes होते हैं।
2. साथ ही ये Bridges बहुत ही simple होते हैं इस्तमाल करने के लिए और ये बहुत ही सस्ते होते हैं, यदि इनकी तुलना दुसरे networking devices के साथ की जाये।
3. यह एक बहुत ही बेहतरीन विकल्प है switches का और इनकी मदद से micro segmentation किया जा सकता है।
4. इनकी मदद से data link layer के ऊपर के load को lower किया जा सकता है. साथ में ये बिलकुल ही translucent प्रतीत होता है MAC layer के ऊपर।
5. इन्हें effectively programmed किया जा सकता है जिससे की वो packets को disallow करें meticulous networks से।
6. Bridges बहुत ही ज्यादा reliable होते हैं अगर कोई bandwidth utilization को कम करना चाहें तब।
Network bridges के Disadvantages क्या हैं?
चलिए अब bridges के disadvantages के विषय में जानते हैं
1. ये असक्षम होते हैं कुछ specific IP address को read करने में; वो ज्यादा concerned होते हैं MAC addresses के साथ।
2. Bridges का इस्तमाल हम एक ऐसे communication network को बनाने के लिए नहीं कर सकते हैं जिसमें की different architectures का इस्तमाल हो।
3. ये में सभी प्रकार की broadcast messages को transfer करते हैं, इसलिए bridges बिलकुल ही असक्षम होते हैं इन messages की scope को limit करने के लिए. बहुत ही बड़े networks इन bridges के ऊपर rely नहीं कर सकते हैं; इसलिए बड़े networks जैसे की WAN जो की IP address specific होते हैं वो इनका इस्तमाल नहीं कर सकते हैं।
4. ये थोड़े expensive अगर हम उनकी तुलना repeaters और hubs से करें तब।
5. Bridging ज्यादा suitable होते हैं LAN network traffic data load को सँभालने के लिए. ये ज्यादा complex और variable data load को handle नहीं कर सकते हैं जैसे की WAN में होता है।
6. ये थोड़े slow काम करते हैं repeaters की तुलना में क्यूंकि इसमें filtering होती है।
Bridges का इस्तमाल क्यूँ करनी चाहिए?
Bridges बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण होते हैं कुछ networks के लिए क्यूंकि बहुत समय में networks को अलग अलग हिस्सों में divide किया जाता है, जो की geographically remote स्तिथ होते हैं एक दुसरे से।
ऐसे में कुछ ऐसे devices की जरुरत होती है जिससे की इन networks को join किया जा सके, जिससे वो भी whole network का हिस्सा बन सके. उदाहरण के लिए, एक divided LAN, अगर कोई भी medium उपस्तिथ न हो इन separate LAN parts को आपस में जोड़ने के लिए, तब एक enterprise की growth सही ढंग से नहीं हो सकती है. ये bridge ऐसा ही एक tool है जो की इन LANs को join कर सकता है।
वहीँ दूसरी बात यह है की एक LAN (उदाहरण के लिए Ethernet) limit हो सकता है उसके transmission distance में. ऐसे problem को हम दूर कर सकते हैं, जहाँ हम bridges को repeaters के तरह इस्तमाल कर सकते हैं, जिससे हम आसानी से एक geographically extensive network को connect कर सकते हैं building या campus के भीतर bridges के मदद से।
इसलिए हम ये कह सकते हैं की geographically challenged networks को आसानी से Bridges के द्वारा create किया जा सकता है।
तीसरा कारण होता है, network administrator बहुत ही आसानी से ये control कर सकता है की कितनी मात्रा की traffic जा रही हैं bridges के माध्यम से जिन्हें expensive network media के across भेजा जाता है।
वहीँ चौथा कारण है, ये bridge एक प्रकार के plug and play device होते हैं, जिन्हें की configure नहीं किया जाता है. अगर कोई machine को निकाल दिया जाता है network में तब ऐसे में network administrator को ये काम करने की जरुरत नहीं होती है की उन्हें bridge configuration को update किया जाये, क्यूंकि bridges self configured हो जाते हैं. साथ में वो data transfer करने में मदद करते हैं।
आज आपने क्या सीखा
मुझे उम्मीद है की आपको मेरी यह लेख नेटवर्क ब्रिज क्या है (What is Bridge in Hindi) जरुर पसंद आई होगी. मेरी हमेशा से यही कोशिश रहती है की readers को ब्रिज के प्रकार के विषय में पूरी जानकारी प्रदान की जाये जिससे उन्हें किसी दुसरे sites या internet में उस article के सन्दर्भ में खोजने की जरुरत ही नहीं है।
इससे उनकी समय की बचत भी होगी और एक ही जगह में उन्हें सभी information भी मिल जायेंगे. यदि आपके मन में इस article को लेकर कोई भी doubts हैं या आप चाहते हैं की इसमें कुछ सुधार होनी चाहिए तब इसके लिए आप नीच comments लिख सकते हैं।
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thanks bro
Thanks sir very helpful topic
Bhai pheli baar dekha tu aisa laga ki bridge ke baare me bhai ne article kio dala but jab dekha tab sada smjh agya thanks bhai
Super Hit Post Pranbhanjan Sir….
thanks bhai.
Nice post hai sir